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हिंदी कहानियां - भाग 83

दुरात्मा कीचक🙏🙏 
द्रौपदी के साथ पाण्डव वनवास के अंतिम वर्ष अज्ञातवास के समय में वेश तथा नाम बदलकर राजा विराट के यहां रहते थे| उस समय द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री रख लिया था और विराट नरेश की रानी सुदेष्णा की दासी बनकर वे किसी प्रकार समय व्यतीत कर रही थीं|परस्त्री में आसक्ति मृत्यु का कारण होती है
राजा विराट का प्रधान सेनापति कीचक सुदेष्णा का भाई था| एक तो वह राजा का साला था, दूसरे सेना उसके अधिकार में थी, तीसरे वह स्वयं प्रख्यात बलवान था और उसके समान ही बलवान उसके एक सौ पांच भाई उसका अनुगमन करते थे| इन सब कारणों के कीचक निरंकुश तथा मदांध हो गया था| वह सदा मनमानी करता था| राजा विराट का भी उसे कोई भय या संकोच नहीं था| उल्टे राजा ही उससे दबे रहते थे और उसके अनुचित व्यवहारों पर भी कुछ कहने का साहस नहीं करते थे|
दुरात्मा कीचक अपनी बहन रानी सुदेष्णा के भवन में एक बार किसी कार्यवश गया| वहां अपूर्व लावण्यवती दासी सैरंध्री को देखकर उस पर आसक्त हो गया| कीचक ने नाना प्रकार के प्रलोभन सैरंध्री को दिए| सैरंध्री ने उसे समझाया, "मैं पतिव्रता हूं| अपने पति के अतिरिक्त किसी पुरुष की कभी कामना नहीं करती| तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो|"
लेकिन कामांध कीचक ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया| उसने अपनी बहन सुदेष्णा को भी तैयार कर लिया कि वे सैरंध्री को उसके भवन में भेजेंगी| रानी सुदेष्णा ने सैरंध्री के अस्वीकार करने पर भी अधिकार प्रकट करते हुए डांटकर उसे कीचक के भवन में जाकर वहां से अपने लिए कुछ सामग्री लाने को भेजा| सैरंध्री जब कीचक के भवन में पहुंची, तब वह दुष्ट उसके साथ बल प्रयोग करने पर उतारू हो गया| उसे धक्का देकर वह भागी और राजसभा में पहुंची| परंतु कीचक ने वहां पहुंचकर राजा विराट के सामने ही उसके केश पकड़कर भूमि पर पटक दिया और पैर की एक ठोकर लगा दी| राजा विराट कुछ भी बोलने का साहस न कर सके|
सैरंध्री बनी द्रौपदी ने देख लिया कि इस दुरात्मा से विराट उसकी रक्षा नहीं कर सकते| कीचक और भी धृष्ट हो गया| अंत में व्याकुल होकर रात्रि में द्रौपदी भीमसेन के पास गई और रोकर उसने भीमसेन से अपनी व्यथा कही| भीमसेन ने उसे आश्वासन दिया| दूसरे दिन सैरंध्री ने भीमसेन की सलाह के अनुसार कीचक से प्रसन्नतापूर्वक बातें कीं और रात्रि में उसे नाट्यशाला में आने को कह दिया|
राजा विराट की नाट्यशाला अंत:पुर की कन्याओं के नृत्य एवं संगीत सीखने में काम आती थी| वहां दिन में कन्याएं गान-विद्या का अभ्यास करती थीं, किंतु रात्रि में वह सूनी रहती थी| कन्याओं के विश्राम के लिए उसमें एक पलंग पड़ा था, रात्रि का अंधकार हो जाने पर भीमसेन चुपचाप आकर नाट्यशाला के उस पलंग पर सो गए| कामांध कीचक सज-धजकर वहां आया और अंधेरे में पलंग पर बैठकर, भीमसेन को सैरंध्री समझकर उसके ऊपर उसने हाथ रखा| उछलकर भीमसेन ने उसे नीचे पटक दिया और वे उस दुरात्मा की छाती पर चढ़ बैठे|
कीचक बहुत बलवान था| भीमसेन से वह भिड़ गया| दोनों में मल्लयुद्ध होने लगा, किंतु भीमसेन ने उसे शीघ्र ही पछाड़ दिया और उसका गला घोंटकर उसे मार डाला| फिर उसका मस्तक तथा हाथ-पैर इतने जोर से दबा दिए कि सब धड़ के भीतर घुस गए| कीचक का शरीर एक डरावना लोथड़ा बन गया|
प्रात:काल सैरंध्री ने ही लोगों को दिखाया कि उसका अपमान करने वाला कीचक किस दुर्दशा को प्राप्त हुआ| परंतु कीचक के एक सौ पांच भाइयों ने सैरंध्री को पकड़कर बांध लिया| वे उसे कीचक के शव के साथ चिता में जला देने के उद्देश्य से श्मशान ले गए| सैरंध्री क्रंदन करती जा रही थी| उसका विलाप सुनकर भीमसेन नगर का परकोटा कूदकर श्मशान पहुंचे| उन्होंने एक वृक्ष उखाड़कर कंधे पर रख लिया और उसी से कीचक के सभी भाइयों को यमलोक भेज दिया| सैरंध्री के बंधन उन्होंने काट दिए|
अपनी कामासक्ति के कारण दुरात्मा कीचक मारा गया और पापी भाई का पक्ष लेने के कारण उसके एक सौ पांच भाई भी बुरी मौत मारे गए|.

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